रूस ने द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत नाजी जर्मनी के आत्मसमर्पण की 75 वीं वर्षगांठ को चिह्नित करने हेतु मास्को में अपनी वार्षिक “विजय दिवस परेड” आयोजित किया है। यह परेड एक राष्ट्रीय दिवस के अलावा, रूस को दुनिया को अपने सैन्य कर्मियों एवं उपकरणों की रेंज के प्रदर्शन की अनुमति देता है। हालांकि, इससे भी अधिक, इस घटना को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए रूसी राष्ट्रवाद एवं इसके शक्ति आधार को मजबूत करने हेतु एक मार्ग के रूप में देखा जा गया है।

इस वर्ष की परेड को कोरोनावायरस की अभूतपूर्व वैश्विक स्वास्थ्य संकट के कारण अपनी आयोजन की मूल तिथि 9 मई से अलग 24 जून को पुनर्निर्धारित करना पड़ा है। हालांकि, मॉस्को में परेड की तैयारी पूर्व में ही हो चुकी थी एवं रूसी रक्षा मंत्रालय ने पुष्टि की थी कि इस बार 13,000 सैनिक परेड में भाग ले रहे हैं, जिसमें 216 यूनिट सैन्य उपकरण (टैंक से लेकर बख्तरबंद वाहन और रॉकेट लांचर), लड़ाकू विमान एवं हेलीकॉप्टर सहित 75 सैन्य विमानों के साथ एक हवाई क्रॉसिंग शामिल थी।
रूसियों का मानना है कि नाजी जर्मनी पर जीत समकालीन रूस में अब तक की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। क्रेमलिन के लिए, रूस के विभिन्न लोगों को एकजुट करने का यह सबसे प्रभावी साधन है, इसका उपयोग क्रेमलिन की विदेश नीति की आकांक्षाओं को वैध बनाने हेतु किया जाता है, सामान्य तौर पर यह रवैया रूस को महान शक्ति का दर्जा प्रदान करता है। पिछले दशक में, इसका महत्व तभी बढ़ा जब क्रेमलिन ने अपनी विरासत का एकाधिकार बढ़ा दिया।
इस साल की परेड मूल रूप से एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह के बाद आई है, जिसमें जनता को रूसी संविधान को बदलने पर जोर दिया गया है। अन्य बातों के अलावा, यह पुतिन का कार्यकाल 2036 तक बढाया जा सकता है, उनका वर्तमान कार्यकाल 2024 में समाप्त हो जाएगा। हालांकि, परेड के साथ, सार्वजनिक मतदान स्थगित कर दिया गया, और अब 1 जुलाई को आयोजित होगा। फिर भी, वोट से पहले परेड को पुतिन के लिए राष्ट्रीय गौरव एवं जनता के समर्थन को बढ़ाने के एक तरीके के रूप में देखा गया है, खासकर ऐसे समय में जब कोरोनावाइरस संकट से निपटने के कारण उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है।
रुसी विजय दिवस द्वितीय विश्व युद्ध के अंत एवं 1945 में मित्र देशों की नाजी सेना पर जीत का प्रतीक है। एडोल्फ हिटलर को 30 अप्रैल को गोली लगने के बाद 7 मई को, जर्मन सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जिसे अगले दिन आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया एवं 9 मई को प्रभावी हुआ था।
पूर्व सोवियत संघ नहीं चाहता था कि पश्चिम में आत्म-समर्पण हो, वह लाल सेना एवं सोवियत आबादी के योगदान को प्रतिबिंबित करने हेतु इस तरह के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित करना चाहता था। सोवियत संघ के प्रधान मंत्री जोसेफ स्टालिन चाहते थे कि जर्मनी भी बर्लिन में एक संधि-पत्र पर हस्ताक्षर करे।
सैन्य हस्तांतरण कानून सशस्त्र बलों के जनरल कमांड के जनरल ऑफ स्टाफ के प्रमुख द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था, फ्रांस के रीम्स में जो मुख्यालय रहा था सर्वोच्च सहयोगी अभियान बल (SHAEF) का, अल्फ्रेड जोडल एवं एडमिरल जनरल हंस-जॉर्ज वॉन फ्राइडेबुर्ग ने 7 मई के शुरुआती घंटों में हस्ताक्षरित किया था। यह संधिपत्र 9 मई की आधी रात के एक मिनट बाद से प्रभावी होना था।
लेकिन स्टालिन अंतिम समारोह को पश्चिम में नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने जोर देकर कहा कि जर्मन 9 मई को आधी रात के 1 मिनट बाद बर्लिन में संधिपत्र पर हस्ताक्षर करेंगे। यद्यपि दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए गए थे, क्योंकि ब्रिटिश प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल का कहना था कि आयोजन एवं जश्न की तयारी लंदन में हो रखी है, अतः ब्रिटेन में यूरोप दिवस में विजय का जश्न 8 मई को होगा, जैसा कि उन्होंने किया था।
स्टालिन का तर्क था कि कई क्षेत्रों में जर्मन सेना के खिलाफ सोवियत सेना अभी भी लड़ रही है, इसलिए, स्टालिन ने सोवियत संघ में जीत का जश्न 9 मई तक शुरू नहीं हो सकता है, इस कारण , 9 मई को रूस में विक्ट्री डे मनाया गया।
इस वर्ष कोविद -19 महामारी के कारण इस उत्सव को जून में लाया गया है, विदित है कि युद्ध जीतने के बाद और 9 मई को अपना विजय दिवस होने के बाद, स्टालिन एक सैन्य परेड के साथ जीत का स्मरण करना चाहता था। 22 जून, 1945 को पहली बार, “ग्रेट पैट्रियटिक युद्ध में जर्मनी पर जीत की स्मृति में, मॉस्को के रेड स्क्वायर में 24 जून, 1945 को नियमित सेना, नौसेना एवं मॉस्को की जेल में परेड मनाया गया था।
हालाँकि, उसके बाद से 9 मई को विजय दिवस परेड आयोजित होता रहा है। कोरोना संकट की वजह से अबकी बार यह परेड 24 जून को करीब 90 मिनट तक चला, भारत व चीन सहित 19 देशों के सैन्य कर्मियों की भागीदारी इस आयोजन में देखी गई है। इस समारोह में 64,000 प्रतिभागिगी शामिल थे।
मॉस्को में, 14,000 सैन्यकर्मी रेड स्क्वायर से मार्च पास्ट किया, इसके अतिरिक्त, 27 से अधिक शहरों में 50,000 से अधिक सैनिकों ने मार्च किया हैं। भारतीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह इस समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
पूर्व में कई अन्य भारतीय नेताओं ने इस विजय दिवस परेड में भाग लेते रहे हैं, 2015 में 70 वीं वर्षगांठ विजय दिवस समारोह में, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भारत का प्रतिनिधित्व करने गए थे। मनमोहन सिंह ने 2005 में भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री के रूप में 60 वीं वर्षगांठ में भाग लिया था। मुखर्जी ने पहले भी समारोह में भाग लिया था। 1995 में, विदेश मंत्री के रूप में, वह 50 वीं वर्षगांठ समारोह में उपस्थित थे।
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